शिवजी की आरती लिखित में: ॐ जय शिव ओंकारा आरती करने से होंगे हर दुःख दूर

शिवजी की आरती लिखित में:- हिंदू धर्म में कोई भी पूजा बिना आरती किए अधूरी मानी जाती है। किसी भी पूजा, पाठ, अनुष्ठान,यज्ञ एवम अभिषेक के समापन पर आरती का करना ही पूर्णाहुति सफल कहलाती है। भगवान भोलेनाथ के भी किसी भी पूजा के बाद शिवजी की आरती करना आवश्यक होती है। बिना Shivji ki Aarti के कोई भी पूजा, पाठ, अभिषेक, अनुष्ठान संपूर्ण नहीं होता है।

भगवान शिव जी की आरती में उनके अलग अलग स्वरूप, महिमा का मंडन होता है। जब हम शिव जी के स्वरूप एवम महिमा का बखान आरती के माध्यम से करते है तो भगवान शिव खुश होते है। भगवान शिव खुश होगे तो आशीर्वाद ही प्रदान करेंगे। आप को यह बताते हुए खुशी होती है कि शिव जी की आरती को यदि तल्लीन हो कर करेंगे तो वास्तव में आरती में वर्णित भगवान शिव के स्वरूप के दर्शन बंद या खुली आंखों से कर सकते है।

शिवजी की आरती लिखित में | Shiv ji Ki Aarti Hindi me

भगवान शिवजी की आरती लिखित में ओम जय शिव ओमकारा में भगवान शिव की शक्ति और उनके परब्रह्म स्वरूप का बोध होता है। शिवजी का परब्रह्म स्वरूप वही जो महाशिवरात्रि के दिन अग्नि स्तंभ के रूप मे प्रकट हुआ था। शिवरात्रि और शिवजी की पूजा में इस ओम जय शिव ओमकारा आरती का गायन करने से शिवजी भक्तों पर बड़ी कृपा करते हैं। इसलिए भक्तों में इस आरती को लेकर गहरी आस्था है।आप भी हर दिन और शिवरात्रि एवं शिव पूजा के अवसर पर Shiv ji ki Aarti Hindi me गायन कीजिए और शिवजी की कृपा का लाभ लीजिए।     

शिव जी की आरती लिखित में :

ओम जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा। ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥

ओम जय शिव ओंकारा॥

एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे। हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥

ओम जय शिव ओंकारा॥

दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे। 

त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे॥

ओम जय शिव ओंकारा॥

अक्षमाला वनमाला मुण्डमालाधारी। 

त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥

ओम जय शिव ओंकारा॥

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे। 

सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे॥

ओम जय शिव ओंकारा॥

कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशूलधारी। 

सुखकारी दुखहारी जगपालनकारी॥

ओम जय शिव ओंकारा॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका। 

मधु-कैटभ दो‌उ मारे, सुर भयहीन करे॥

ओम जय शिव ओंकारा॥

लक्ष्मी, सावित्री पार्वती संगा। 

पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा॥

ओम जय शिव ओंकारा॥

पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा। 

भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा॥

ओम जय शिव ओंकारा॥

जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला।

 शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥

ओम जय शिव ओंकारा॥

काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी। 

नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥

ओम जय शिव ओंकारा॥

त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे। कहत शिवानन्द स्वामी, मनवान्छित फल पावे॥

ओम जय शिव ओंकारा॥

ओम जय शिव ओंकारा॥

शिवजी की आरती PDF | ShivJi Ki Aarti PDF

हम आप सभी को शिव जी की आरती का पीडीऍफ़ उपलब्ध करा रहे है जिस भी भक्त को पीडीऍफ़ डाउनलोड करना है या पढ़ना है तो वह लिंक पर क्लिक करके डाउनलोड कर सकता है।

शिवजी की आरती | Shiv ji Ki Aarti

हिंदू धर्म में कोई भी पूजा बिना आरती किए अधूरी मानी जाती है। किसी भी पूजा, पाठ, अनुष्ठान,यज्ञ एवम अभिषेक के समापन पर आरती का करना ही पूर्णाहुति सफल कहलाती है। भगवान भोलेनाथ के भी किसी भी पूजा के बाद शिवजी की आरती करना आवश्यक होती है। बिना Shiv ji ki Aarti के कोई भी पूजा, पाठ, अभिषेक, अनुष्ठान संपूर्ण नहीं होता है।

  भगवान शिव जी की आरती में उनके अलग अलग स्वरूप, महिमा का मंडन होता है। जब हम शिव जी के स्वरूप एवम महिमा का बखान आरती के माध्यम से करते है तो भगवान शिव खुश होते है। भगवान शिव खुश होगे तो आशीर्वाद ही प्रदान करेंगे। आप को यह बताते हुए खुशी होती है कि शिव जी की आरती को यदि तल्लीन हो कर करेंगे तो वास्तव में आरती में वर्णित भगवान शिव के स्वरूप के दर्शन बंद या खुली आंखों से कर सकते है।

शिवजी की आरती लिखित में (Shiv ji Ki Aarti Hindi me)

भगवान शिवजी की आरती लिखित में ओम जय शिव ओमकारा में भगवान शिव की शक्ति और उनके परब्रह्म स्वरूप का बोध होता है। शिवजी का परब्रह्म स्वरूप वही जो महाशिवरात्रि के दिन अग्नि स्तंभ के रूप मे प्रकट हुआ था। शिवरात्रि और शिवजी की पूजा में इस ओम जय शिव ओमकारा आरती का गायन करने से शिवजी भक्तों पर बड़ी कृपा करते हैं। इसलिए भक्तों में इस आरती को लेकर गहरी आस्था है।

आप भी हर दिन और शिवरात्रि एवं शिव पूजा के अवसर पर Shiv ji ki Aarti Hindi me गायन कीजिए और शिवजी की कृपा का लाभ लीजिए।शिवजी की आरती PDF में हम आपके स्तुति के लिए पेश कर रहे है। इस आरती का गान आप घर में, मंदिर में सुबह या शाम को पूजा, अनुष्ठान के बाद तल्लीनता से कर खुशियों का आनंद उठावें।

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शिवजी की आरती का अर्थ/अनुवाद 

     शिव जी की आरती की बात ही कुछ निराली है क्योंकि भगवान शिव की भक्ति करके जो आनंद हमें मिलता है उतना ही आनंद भगवान शिव भी पाते हैं। शिव भोले की आरती Shiv Aarti की बात ही कुछ ऐसी है । भोलेनाथ की आरती करके उन्हें जल्दी प्रसन्न भी किया जा सकता है। उनकी आरती की रचना शिवानन्द जी के द्वारा की गयी थी।

      वैसे तो शिव जी की आरती का अर्थ आरती करते समय अपने आप समझ आता रहता है। फिर भी आप आरती का अर्थ अच्छी तरह से समझ सके उसके लिए हम आपको शिवजी की आरती का अर्थ एवम अनुवाद प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहे है। आशा है आप इस Shiv ji ki Aarti ka Aarth evm Anuvad से मन में रुचि पैदा कर भगवान शिव जी को खुश कर शिव जी के नजदीक पहुंच सकते है।

जय शिव ओंकारा, ॐ जय शिव ओंकारा।

ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा।।

हे भगवान शिव! आपकी जय हो। हे ॐ शब्द के रचियता भगवान शिव! आपकी जय हो। ब्रह्मा, विष्णु व सभी देवताओं के स्वरुप आप ही हो अर्थात सभी ईश्वर व देवता आप ही के रूप हैं। यहाँ भगवान शिव को त्रिदेव का रूप बताया गया है अर्थात वे ही ब्रह्मा हैं, वे ही विष्णु हैं और वे ही शिव हैं।

एकानन चतुरानन पंचानन राजे।

हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे।

आप ही एक मुख वाले नारायण हैं, आप ही चार मुख वाले परम ब्रह्मा हैं, आप ही पांच मुख वाले भगवान शिव हैं। आप ही ब्रह्मा के वाहन हंस पर विराजते हैं, आप ही विष्णु के वाहन गरुड़ के वाहक हैं और आप ही शिव के वाहन बैल के ऊपर विराजित हैं।

दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।

त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे।।

आमजन की भांति आपकी दो भुजाएं हैं, विष्णु की भांति आपकी चार भुजाएं हैं व शिव की भांति दस भुजाएं हैं। आपके अंदर त्रिदेवों के गुण हैं और तीनों लोकों में आप  के बीच प्रिय हो।

अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी।

चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी।।

ब्रह्मा की भांति रुद्राक्ष की माला, विष्णु की भांति सुगन्धित पुष्पों की माला तो शिव की भांति राक्षसों के कटे हुए सिर की माला आपने पहनी हुई है। ब्रह्मा की भांति चंदन का तिलक, विष्णु की भांति मृगमद कस्तूरी का तिलक तो शिव की भांति चंद्रमा आपके मस्तक पर सुशोभित है।

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।

सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे।।

आपने ब्रह्मा की भांति श्वेत वस्त्र, विष्णु की भांति पीले वस्त्र तो शिव की भांति बाघ की खाल के वस्त्र पहने हुए हैं। आपके साथ में ब्रह्मा जी के अनुयायी अर्थात ऋषि-मुनि व चारों वेद, विष्णु के अनुयायी गरुड़ व धर्मपालक, शिवजी के अनुयायी भूत, प्रेत इत्यादि हैं।

कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूलधारी।

सुखकारी दुखकारी जगपालन कारी।।

आपके हाथों में भगवान ब्रह्मा की भांति कमंडल, विष्णु की भांति चक्र तो शिव की भांति त्रिशूल है। आप ही ब्रह्मा की भांति इस विश्व का निर्माण करते हो, विष्णु की भांति इसका संचालन करते हो तो शिव की भांति इसका संहार करते हो।

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।

प्रणवाक्षर में शोभित ये तीनों एका।।

कोई अविवेकी व्यक्ति भी यह जान सकता है कि ब्रह्मा, विष्णु व सदाशिव आप ही के रूप हैं। ब्रह्मांड के प्रथम अक्षर ॐ के मध्य में ये तीनों ईश्वर विराजमान हैं।

काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी।

नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी।।

भगवान महादेव अपनी नगरी काशी में विश्वनाथ रूप में विराजते हैं जिनकी सवारी नंदी है । और जो ब्रह्मचारी भी है अर्थात मोह-माया को त्यागने वाले। जो भी भक्तगण उन्हें प्रतिदिन सुबह उठकर भोग लगाता है, उस पर भगवान शिव प्रसन्न होते हैं।

त्रिगुण शिव जी की आरती जो कोई नर गावे।

कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे।।

तीनों गुणों से युक्त भगवान शिव जी की आरती जो कोई भी भक्त करता है, शिवानन्द स्वामी जी के अनुसार उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

FAQ

Qu.प्रणवाक्षर क्या है?

Ans. प्रणव कहते हैं ऊँ को। इसे ऊँकार भी कहते हैं। अर्थ है — ऊँ के बीच में ब्रह्मा, विष्णु और महेश ये तीनों लोग एक साथ स्थिर हैं। अर्थात ऊँ शब्द के अंदर ब्रह्मा विष्णु और शिव तीनो लोग एक ही रूप में अर्थात शिव हैं।

Qu.ओम शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई?

Ans. कुछ मान्यताओं के अनुसार ॐ की उत्पत्ति शिव के मुख से हुई। हालांकि ऋग्वेद और यजुर्वेद से लेकर कई उपनिषदों में ॐ का जिक्र मिलता है। मंडूक उपनिषद में कहा गया है कि संसार में भूत, भविष्य और वर्तमान काल में एवं इनसे भी परे जो हमेशा हर जगह मौजूद है, वो ॐ है। यानी ॐ इस ब्रह्मांड में हमेशा से था, है और रहेगा।

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