शिव पुराण का रहस्य: जानें कितना होगा झूठ, पाप-पुण्य व धर्म का वर्चस्व

शिव पुराण का रहस्य:- Shiv Puran में 6 खण्ड और 24000 श्लोक हैं। इस पुराण में भगवान शिव के विभिन्न स्वरूपों, अवतारों, ज्योतिर्लिंगों, भक्तों और भक्ति का व्यापक वर्णन है। शिवपुराण में देवों के देव महादेव के कल्याणकारी स्वरूप, रहस्य, महिमा और पूजा का विस्तृत वर्णन किया गया है। शिव पुराण का प्रारम्भ शिव के वामन स्वरूप के शून्य से परिचय से होता है। भगवान शिव का वामन अवतार शिव महापुराण का सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसे पढ़ने से मनुष्य को भगवान शिव का आशीर्वाद, सुख, दीर्घायु, ज्ञान और मुक्ति मिलती है। Shiv Puran ज्ञान का स्रोत है तथा संसार की उत्पत्ति तथा विनाश के बारे में बताता है।

Shiv Puran Ka Rahasya

शिव पुराण का रहस्य | Shiv Puran Ka Rahasya

हर इंसान के जीवन में एक समय ऐसा आता है जब उसे सही-गलत, तथ्य-झूठ में फर्क करना बहुत मुश्किल हो जाता है। जीवन का असली मतलब समझने के लिए वह किताबों, जानकार लोगों आदि की मदद लेने लगता है। लेकिन जीवन का सबसे बड़ा सच यह है कि हर किसी के लिए जीवन के मायने उनके अनुभवों के आधार पर अलग-अलग होते हैं। लेकिन जीवन से जुड़े कुछ ऐसे रहस्य भी हैं जिनके बारे में जानकर आपका जीवन आसान हो सकता है। शिवपुराण में भगवान शिव ने माता पार्वती को जीवन के 5 ऐसे रहस्य बताए हैं, जिन्हें जानकर कोई भी मनुष्य जीवन की हर दुविधा और समस्या से मुक्ति पा सकता है। आइए जानते हैं वो 5 रहस्य।

सबसे बड़ा धर्म और सबसे बड़ा पाप कौन सा है?

देवी पार्वती के पूछने पर भगवान शिव ने उन्हें मानव जीवन का सबसे बड़ा धर्म और अधर्म क्या माना जाता है, इसके बारे में बताया। भगवान शंकर कहते हैं, ‘मनुष्य के लिए सबसे बड़ा धर्म सत्य बोलना या सत्य का साथ देना है और सबसे बड़ा अधर्म है झूठ बोलना या उसका साथ देना।’ इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को अपने मन, वचन और कर्म में सदैव सत्य को ही शामिल करना चाहिए क्योंकि इससे बड़ा कोई धर्म नहीं है। झूठ बोलना या किसी भी प्रकार से झूठ का समर्थन करना व्यक्ति की बर्बादी का कारण बन सकता है।

मनुष्य को अपने प्रत्येक कर्म का साक्षी स्वयं बनना चाहिए, चाहे वह अच्छा करे या बुरा। उसे यह कभी नहीं सोचना चाहिए कि उसके कार्यों को कोई नहीं देख रहा है। कई लोगों के मन में गलत काम करते समय यह भावना बनी रहती है कि उन्हें कोई नहीं देख रहा है और इसी वजह से वे बिना डरे पाप करते रहते हैं। लेकिन सच तो कुछ और ही है. मनुष्य अपने समस्त कर्मों का साक्षी स्वयं है। यदि मनुष्य यह भावना सदैव अपने मन में रखे तो वह कोई भी पाप करने से स्वतः ही रुक जाएगा।

शिव पुराण के अनुसार क्या नही करें

भगवान शिव आगे कहते हैं, ‘किसी भी मनुष्य को मन, वाणी और कर्म से पाप की इच्छा नहीं करनी चाहिए। क्योंकि मनुष्य जो भी कार्य करता है उसका फल उसे अवश्य ही भोगना पड़ता है। यानि व्यक्ति को अपने मन में ऐसी कोई भी बात नहीं आने देनी चाहिए जो धर्म शास्त्रों के अनुसार पाप मानी गई हो। न तो अपने मुख से कोई ऐसी बात निकालनी चाहिए और न ही कोई ऐसा कार्य करना चाहिए जिससे दूसरों को कोई परेशानी या दुःख पहुंचे।

सफल होने के लिए यह एक बात ध्यान में रखें

दुनिया में हर इंसान को किसी न किसी व्यक्ति, वस्तु या स्थिति से लगाव होता है। मोह और आसक्ति एक ऐसा जाल है जिससे मुक्त होना बहुत कठिन है। भगवान शिव कहते हैं, ‘व्यक्ति को जिस भी व्यक्ति या स्थिति से लगाव हो रहा है, जो उसकी सफलता में बाधा बन रही है, उसे उसमें दोष ढूंढना शुरू कर देना चाहिए। हमें यह सोचना चाहिए कि यह क्षणिक मोह हमारी सफलता में बाधा बन रहा है। ऐसा करने से मनुष्य धीरे-धीरे मोह-माया के जाल से मुक्त हो जाएगा और अपने सभी कार्यों में सफलता प्राप्त करने लगेगा।

अगर आप ये एक बात समझ लेंगे तो आपको दुःख का सामना नहीं करना पड़ेगा।

शिव मनुष्य से कहते हैं, ‘मनुष्य की तृष्णा और इच्छाओं से बड़ा कोई दुःख नहीं है और उन्हें त्यागने से बड़ा कोई सुख नहीं है। मनुष्य का अपने मन पर कोई नियंत्रण नहीं होता. हर किसी के मन में कई अनावश्यक इच्छाएं होती हैं और यही इच्छाएं मनुष्य के दुख का कारण बनती हैं। जरूरी है कि इंसान अपनी जरूरतों और इच्छाओं के बीच अंतर को समझे और फिर अनावश्यक इच्छाओं को त्याग कर शांत मन से अपना जीवन जिए I

शिव पुराण का महत्त्व | Shiv Puran Ka Mahtav

शिव भक्तों के लिए शिव पुराण का विशेष महत्व है। शिवपुराण में परमपिता परमेश्वर भगवान शिव के कल्याणकारी स्वरूप की तात्विक व्याख्या, रहस्य, महिमा तथा उपासना का वर्णन किया गया है। शिवपुराण को भक्तिपूर्वक पढ़ना और सुनना सर्वोत्तम उपाय है। शिव पुराण के अनुसार शिव भक्ति प्राप्त कर व्यक्ति सर्वोच्च गति को प्राप्त कर शिव पद प्राप्त कर लेता है। इस पुराण को निःस्वार्थ भाव से और भक्तिपूर्वक सुनने से मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाता है और इस जीवन में महान सुखों का उपभोग करके अंत में शिवलोक को प्राप्त होता है।

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