शिवरात्रि क्यों मनाई जाती है इसे मनाने का मुख्य कारण और महत्व

शिवरात्रि क्यों मनाई जाती है:- शिवरात्रि का शाब्दिक अर्थ समझें तो भगवान शिव की रात्रि है। पुराणों ग्रंथों और के अनुसार हम आपको बताते हैं कि शिवरात्रि क्यों मनाई जाती है। शिवरात्रि वर्ष में प्रति माह कृष्ण पक्ष की तेरस को आती है। महा शिवरात्रि वर्ष में एक बार फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष में तेरस को आती है। आप जरूर जानें कि Shivratri Kyo Manaya Jata Hai। भगवान शिव को तो दाम्पत्य सुख के लिए भी विशेष माना जाता है। माता पार्वती ने कठोर तपस्या की तब भगवान शिव ने अपने दाम्पत्य जीवन में प्रवेश किया। मासिक शिवरात्रि को भगवान शिव की ही पूजा, प्रार्थना, अभिषेक किया जाता है।

Shivratri Kyo Manaya Jata Hai

महाशिवरात्रि को भगवान शिव के साथ माता पार्वती की पूजा, अभिषेक, जप वगेरह किया जाता है। शिवरात्रि की पूजा से काम चलता है कि भगवान शिव को मन में अर्पितकर स्वयं को समर्पित करते हुए उन्ही का हिस्सा बांटते हैं। शिवरात्रि फाल्गुन मास में कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को भगवान शिव का माता पार्वती के साथ विवाह हुआ था। इस प्रकार शिवरात्रि को पूजा, जप, अभिषेक भगवान शिव-पार्वती की जयंती के रूप में मनाया जाता है।

शिवरात्रि क्यों मनाई जाती है (Shivratri Kyo Manaya Jata Hai)

शिवजी त्रयोदशी के स्वामी हैं। यह दिन चंद्रमा सूर्य की सबसे बड़ी घटना है। शिवरात्रि की रात को सभी भूतो की सलाह पर शिव से आत्मसाधना की जाती है। इस दिन जीवरूपी चंद्रमा का परमात्मारूपी सूर्य के साथ योग बनता है। इस कारण भक्तजन शिवरात्रि को जागरण एवं पूजा, जप एवं अभिनन्दन करते हैं। शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव पहली बार ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए थे। इसी रात में ज्योतिर्लिंग की शुरुआत और अंत का कोई पता नहीं चल सका। शिव का यही स्वरूप महाशिव कहलाया और वो रात थी शिवरात्रि की।

श्रावण माह में शिवरात्रि का संतों के ग्रंथों में वर्णन अमृत माह के समय हलाहल नामक विष पान किया गया था और भगवान शिव ने उस विष को अपने कंठ में रखा था। इस विष की तपन शांति के लिए पंचामृत अभिषेक किया गया। भगवान धन्वंतरि के अनुसार इस रात भगवान शिव को जगाए रखना जरूरी था। इसी कारण इस शिवरात्रि को रात्रिजागरण करके उनकी पूजा-अर्चना की जाती है। विष के कारण शिव का कंठ मिलाए के कारण ये नीलकंठ कहलाए।

इस प्रकार से सालभर में कुल 12 शिवरात्रियां होती हैं, जिनमें फाल्गुन मास की शिवरात्रि का विशेष महत्व होता है। फाल्गुन मास की शिवरात्रि को महाशिवरात्रि के नाम से जाना जाता है। हालाँकि प्रत्येक माह की शिवरात्रि का भी विशेष महत्व है। इस दिन व्रत, पूजन के साथ ही शिव जी का अभिषेक करना बहुत ही शुभ रहता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जो लोग इस रात जागकर शिव की पूजा करते हैं, उन्हें कई जन्मों के पापों से मुक्ति मिल जाती है।

शिवरात्रि का महत्व | Shivratri Ka Mahtv)

शिव, शंभू, भोले बाबा, कैलाशपति, नीलकंठ आदि अनेक मंदिरों से पूजित भगवान के लिए शिवरात्रि एक महत्वपूर्ण रात्रि है। हम आपको शिवरात्रि का महत्व बता रहे हैं। भगवान शिव – पार्वती विवाह, तांडव नृत्य, नीलकंठ के कारण Shivratri को पूजा जाता है। इस रात्रि को Bhagwan Shiv की Upasana की जाती है। भक्तजन पूरी रात भर Jagaran करते हैं। सार्वभौम के समय यज्ञ, वेद मंत्रोच्चार, साधना और ध्यान के वातावरण एवं उनके जीवन में दिव्यता की अनुभूति होती है। इन पवित्र पूजा पाठ से भक्त स्वयं पूरे ब्रह्माण्ड में घुलमिल जाते हैं, शिवमयता का अनुभव होता है।

इस दिन पूजा पाठ के साथ व्रत उपवास भी करना चाहिए। फलाहार करने की छूट मिलती है। Shivratri ka Mahatv में पूजा पाठ, अभिषेक, जप अधिक होता है। शिवरात्रि आध्यात्मिक पथ पर चलने वाले भक्तों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। जो फैमिली फ्लोरिडा और साइंटिस्टों में रत है उनकी शिवरात्रि भी महत्वपूर्ण है। फैमिली रेनॉल्ड्स वाले भक्त शिव पार्वती विवाहोत्सव की तरह Mahashivratri मनाती है। आत्मविश्वास वाले शिव असुरों द्वारा Vijay Diwas के रूप में विजय प्राप्त करने का कारण बनते हैं।

सर्व हिताय, सर्व सुखाय वाले भक्त महाशिवरात्रि इसलिए भगवान शिव इस दिन कैलाश पर्वत के साथ एक हो गए थे, जिससे पर्वत की तरह स्थिर और निश्चल हो गए थे। योगिक परंपरा में शिव को आदिगुरु बनाया गया चोर देवता की तरह पूजते नहीं हैं। गुरु से ही ज्ञान उत्पन्न होता है। इस दिन पूजा पाठ एवं रात्रि जागरण से भीतर की वैकल्पिक दुकान स्थिर है।

महाशिवरात्रि मनाने मुख्य कारण (Mahashivratri Manane Ka Mukhya Karan)

इस पृथ्वी पर विचरण करने वाला सभी व्यक्ति अपने परिवार की सुख शांति की कामना करता है। आखिर इतनी बड़ी पृथ्वी का संचालन, उत्पन्न, एवम संहार जैसे सारे क्रियाकलाप करता कोन है? मनुष्य तो अपनी बुद्धि एवम आकांक्षा के लिए दौड़ धूप कर इच्छापूर्ति कर लेता है किंतु इस सृष्टि में पल रहे जानवर, वनस्पति को दौड़ धूप एवम चिंता करते देखा है। फिर भी उनका जनन, रखरखाव, सुरक्षा, संचालन एवम मृत्यु का हिसाब रखने वाली कोई तो Power हैं जो हमे दिखती नहीं किंतु सब संचालन कर रहे है। इसी विषय पर हम आपको महाशिवरात्रि मनाने का मुख्य कारण बता रहे है।

भगवान शिव परिवार जैसा अपने परिवार में सुख, शांति अर्जित कर सके इसलिए शिवरात्रि मनाई जाना हमारे लिए आवश्यक है। भगवान शिव पार्वती के दांपत्य जीवन में प्रवेश शिवरात्रि को हुआ इसलिए भगवान की पूजा आराधना के लिए इस दिन को हर परिवार बेहद महत्वपूर्ण मनाता है। Married Life में किसी प्रकार की समस्या नहीं आवे, शादी योग्य को अच्छा जीवन साथी मिले यही कामना हर परिवार चाहता है एवम यही महत्वपूर्ण है यही Mahashivratri Manane Ka Mukhya Karan हैं।

सागर मंथन से प्राप्त विषपान करने वाले Nilkanth जैसा दुखभंजन, सहनशील बनना हर भक्त चाहता है इस कारण इस रात को रात्रि जागरण एवम विशेष पूजा कर स्वयं एवम परिवार बने। इसलिए शिवरात्रि मनाई जाती है। भगवान शिव का सामिप्य एवम कृपा हमेशा बनी रहे इसलिए भी यह पूजा करनी आवश्यक हो जाती है क्योंकि इसी दिन ज्योतिर्लिंग के रूप में शिव विद्यमान हुए थे। सभी आध्यात्मिक एवम सनातनी को महाशिवरात्रि मनाना चाहिए जिससे सुख शांति के साथ भगवान शिव की कृपा सदैव बनी रहे।

महाशिवरात्रि व्रत नियम

भारत में भगवान शिव के भव्य मंदिर (Bharat Me Bhagwan Shiv Ka Bhavy Mandir)

भगवान शिव का मंदिर पूरे भारत भर में अनगिनत है। हर गली गांव शहर के शिव मंदिरों को छोड़ दे तो भी भारत में भगवान शिव के भव्य मंदिर का महत्व है। कई शिवालयों का निर्माण तो पुराणों के वर्णन के अनुसार अचंभित करने वाले हैं। विश्व का सबसे भव्य एवं अनोखा शिव मंदिर तेलीवनमलाई जिले में स्थित है। अनामलाई पर्वत की तराई में स्थित मंदिर को अनामलार या मद्रासेश्वर शिव मंदिर कहा जाता है। पूर्णिमा एवं कार्तिक पूर्णिमा को विशाल मेले में आदिवासियों की भीड़ के दर्शन होते हैं।

भक्त 14 किमी लंबी फिल्में कर भगवान शिव को प्रसन्न कर मनोभाव पूर्ण करते हैं। श्रावण मास में जलाभिषेक के लिए लाखो भक्त इस मंदिर में आते हैं। एक कथा के अनुसार भगवान शिव ने ब्रह्मा जी को धोखा देकर पृथ्वी पर उनके मंदिर का रूप धारण नहीं किया। पर्वत की मंजिल 2668 फीट है। यह पर्वत अग्नि का प्रतीक है। तिरुवनमलाई शहर में कुल आठ दिशाओं में आठ लिंग स्थापित हैं- इंद्र, अग्नि, यम, निरुथी, वरुण, वायु, कुबेर, ईशान लिंग। सिद्धांत है कि हर लिंग के दर्शन से अलग-अलग लाभ होता है। मंदिर सुबह 5.30 बजे खुलता है और रात 9 बजे तक खुला रहता है। मंदिर में नियमित अन्नदान भी होता है।

भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग (Bhagwan Shiv Ke 12 Jyotirling)

पुराणों और ग्रंथों में ऐसे कई भव्य, अद्वितीय चित्रों के बारे में विस्तृत कथाओं का वर्णन किया गया है। अन्य का वर्णन असंभव सा है। Bharat Me Bhagawan Shiv Ke Bhavya Mandir जो पर्वतों पर स्थित हैं। भक्त जन इन पहाड़ों पर भी लाखों की संख्या में सुख शांति की प्रार्थना करने जाएं। हम आपको 12 ज्योतिर्लिंग से संबंधित आवश्यक तत्व बताते हैं -बारह ज्योतिर्लिंग जो पूजा के लिए भगवान शिव के पवित्र धार्मिक स्थल और केंद्र हैं। वे स्वयंभू के रूप में जाने जाते हैं, जिसका अर्थ है “स्वयं उत्पन्न”। बारह विपत्तियों पर बारह ज्य्मोर्तिलिंग की दृष्टि से अभिप्राय है।

  1. सोमनाथ यह शिलालेख गुजरात के काठियावाड़ में स्थापित है।
  2. श्री शैल मल्लिकार्जुन मद्रास में कृष्णा नदी के तट पर स्थापित श्री शैल मल्लिकार्जुन शिवलिंग है।
  3. अवंति नगर में स्थापित महाकालेश्वर शिवलिंग, जहां शिवजी ने दैत्यों का नाश किया था।
  4. ॐकारेश्वर मध्य प्रदेश के धार्मिक स्थल ओंकारेश्वर में नर्मदा तट पर पर्वतराज विंध्य की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर पुष्पांजलि अर्पित करते हुए यहां शिवजी प्रकट हुए। जहां ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थापित किया गया।
  5. नागेश्वर गुजरात के द्वारकाधाम के निकट स्थापित नागेश्वर ज्योतिर्लिंग।
  6. बैजनाथ झारखंड के बैद्यनाथ धाम में स्थापित शिवलिंग।
  7. भीमाशंकर महाराष्ट्र की भीमा नदी के किनारे स्थापित भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग।
  8. त्रयंबकेश्वर नासिक (महाराष्ट्र) से 25 किलोमीटर दूर त्रयंबकेश्वर में स्थापित ज्योतिर्लिंग।
  9. घृणेश्वर महाराष्ट्र के क्रीड़ा जिले में स्थित एलोरा गुफा के निकटवर्ती वेसल गांव में घुृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना की गई।
  10. सनातन धर्म का दुर्गम लौकिक ज्योतिर्लिंग। हरिद्वार से 150 मील की दूरी पर स्थित है।
  11. काशी विश्वनाथ मंदिर में स्थापित विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग।
  12. रामचन्द्रम त्रिचनापल्ली (मद्रास) समुद्र तट पर भगवान श्रीराम द्वारा स्थापित रामाश्रम ज्योतिर्लिंग।

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