शिव तांडव स्तोत्र कैसे याद करें:- भगवान शिव को स्मरण करने के लिए केवल शुद्ध, पवित्र भाव होना चाहिए। फिर वो मंत्र हो, श्लोक हो, कथा हो या फिर स्तोत्र हो । इस दुनिया में कोई भी कार्य ऐसा नहीं है जिसे मनुष्य नहीं कर सकता है और रही बात शिव तांडव याद करने की अगर वह शिव भक्त होगा वो तो पूरी लगन से याद कर ही लेता है। फिर भी शिव तांडव स्तोत्र कैसे याद करे इस बारे में आपको आसान तरीका बताने की कोशिश करते है।
आप अपने सुख या दुख भरी कहानी, किसी Film की Stori, Filmi Songs आदि कोई एक बार में याद नही कर सकते उसी तरह भगवान शिव का रावण रचित शिव तांडव स्तोत्र भी याद नही होगा । पुरानी हकीकत है कि कुवे से पानी निकलने की रस्सी बार बार पत्थर पर रगड़ खाती है तो पत्थर पर भी निशान हो जाता है। फिर भक्त के दिमाग में बार बार स्मरण करने से स्तोत्र क्यों याद नहीं होगा?
हमेशा सुबह नहाने के बाद शिव पूजा करने के बाद शिव तांडव स्तोत्र का पाठ शुद्ध मन से करना प्रारंभ करे। दो पांच दिन इस तरह पाठ करते रहने के बाद फिर एक एक श्लोक एक एक दिन कंठस्थ करे। निश्चित रूप से आप शिव तांडव स्तोत्र कर स्तोत्र करने में पारंगत हो जायेंगे। आप और हम देखते और सुनते है कि आजकल तो 4 – 5 वर्ष के बच्चे तक शिव तांडव स्तोत्र कंठस्थ कर लेते है। एक श्लोक को बार बार गुनगुनाने से वह श्लोक अपने आप मस्तिष्क में Fit हो जाता है।
आपको कही पर भी खाली समय नजर आए तो उसका उपयोग शिव तांडव स्तोत्र को गुनगुनाने में लगाए फिर देखो स्तोत्र आपके स्मरण में आने से कौन रोक सकता है। आज के इस मोबाइल युग में शिव तांडव स्तोत्र आपको मोबाइल पर सहजता में उपलब्ध है। इससे आप देख कर एवम सुन कर कंठस्थ का सकते है।
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शिव तांडव स्तोत्र कैसे याद करें
भगवान शिव को स्मरण करने के लिए केवल शुद्ध, पवित्र भाव होना चाहिए। फिर वो मंत्र हो, श्लोक हो, कथा हो या फिर स्तोत्र हो। इस दुनिया में कोई कार्य ऐसा नहीं है कि मनुष्य नहीं कर सके। मनुष्य में भी शिव भक्त होगा वो तो पूरी लगन से याद कर ही लेता है। फिर भी शिव तांडव स्तोत्र कैसे याद करे इस बारे में आपको आसान तरीका बताने की कोशिश करते है।
आप अपने सुख या दुख भरी कहानी, किसी Film की Stori, Filmi Songs आदि कोई एक बार में याद नही कर सकते उसी तरह भगवान शिव का रावण रचित शिव तांडव स्तोत्र याद कर सकते है। हमेशा सुबह नहाने के बाद शिव पूजा करने के बाद शिव तांडव स्तोत्र का पाठ शुद्ध मन से करना प्रारंभ करे। दो पांच दिन इस तरह पाठ करते रहने के बाद फिर एक एक श्लोक एक एक दिन कंठस्थ करे। निश्चित रूप से आप शिव तांडव स्तोत्र कर स्तोत्र करने में पारंगत हो जायेंगे।
आप और हम देखते और सुनते है कि आजकल तो 4 – 5 वर्ष के बच्चे तक शिव तांडव स्तोत्र कंठस्थ कर लेते है। एक श्लोक को बार बार गुनगुनाने से वह श्लोक अपने आप मस्तिष्क में Fit हो जाता है। आपको कही पर भी खाली समय नजर आए तो उसका उपयोग शिव तांडव स्तोत्र को गुनगुनाने में लगाए फिर देखो स्तोत्र आपके स्मरण में आने से कौन रोक सकता है। आज के इस मोबाइल युग में शिव तांडव स्तोत्र आपको मोबाइल पर सहजता में उपलब्ध है। इससे आप देख कर एवम सुन कर कंठस्थ का सकते है।
शिव तांडव स्तोत्र के लाभ
शिव तांडव स्तोत्र प्रकांड पंडित रावण द्वारा रचित है। यह बात अलग है की अहंकार के कारण भगवान को रावण का अस्तित्व मिटाना पड़ा। पौराणिक कथाओं के अनुसार रावण देवाधिदेव शिव का परम भक्त था। शिव पूजा, आराधना, जप, तप के लिए वो सारी तपस्या करता था। रावण को अहंकार था के उसके बराबर सृष्टि में कोई शिव भक्त नहीं है। शिव पुराण के अनुसार रावण को अभिमान हुआ कि शिव भक्त उचित अनुचित कुछ भी कर सकता, यह सोचकर उसने कैलाश पर्वत उठाना चाहा। भगवान शिव ने उसके अहंकार को तोड़ने के लिए कैलाश पर्वत को अपने अंगूठे से दबाकर स्थिर कर दिया। जिससे रावण का हाथ कैलाश पर्वत के नीचे दब गया।
जब उसका हाथ दब गया और कैलाश पर्वत को हिला भी नही सका तो रावण को अपने अहंकार होने पर शर्मिंदा होना पड़ा। तब भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रावण द्वारा 17 श्लोक की रचना की गई जिसे शिव तांडव स्तोत्र नाम दिया गया। फिर शिव भक्ति में मस्त होकर स्तोत्र किया। इस स्तोत्र से भगवान शिव प्रसन्न हुए तथा उसके अहंकार को नष्ट करते हुए उसका हाथ बाहर निकाला।
- पौराणिक कथाओं के अनुसार शिव तांडव स्तोत्र के लाभ बताने जा रहे है।
- शिव तांडव स्तोत्र नियमित रूप से करने पर बड़ा से बड़ा संकट टल जाता है।
- शिव तांडव स्तोत्र भगवान शिव को अतिप्रिय है। अतः यह स्तोत्र करने से शिव से सामिप्य बढ़ता है।
- शिव तांडव स्तोत्र करने वाले भक्त का चेहरा तेजमय होता हुआ आत्मबल मजबूत होता है। धन धान्य की कभी कोई कमी नहीं आती है।
- यह स्तोत्र सभी मनोकामना पूरी करता है। नृत्य, लेखन, योग, साधना, ध्यान, समाधि आदि सिद्धि इस स्तोत्र का पाठ करने से भगवान शिव प्रदान करते है।
- जिनके कुंडली में सर्प योग, कालसर्प योग अथवा पितृ दोष, शनि दोष लगा हो उन्हे शिव तांडव स्तोत्र का पाठ दैनिक करने से इनके कुप्रभाव से छुटकारा मिलता है।
- शिव तांडव स्तोत्र से रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न किया तो हम भक्तो के संकट उतने बड़े भी नही है। इसलिए यह स्तोत्र हमारे सारे संकट एवम अहंकार का हनन करते है।
- शिव तांडव स्तोत्र का एक पाठ सारे पाप नष्ट करने की क्षमता रखते है। फिर दैनिक पाठ से तो हमे शिवमय होने से कोई नहीं रोक सकता है।
- शिव तांडव स्तोत्र के साथ भगवान शिव को काले तिल से स्नान करने से शनि एवम राहु की कुदृष्टि से हमेशा बचकर रहेंगे।
- शिव तांडव स्तोत्र का नित्य पाठ, स्मरण श्रद्धा, पवित्रता एवम शांति से करता है वह भगवान शिव की अच्छी भक्ति प्राप्त कर लेता है। जिससे हाथी, घोड़ों से युक्त यानी आधुनिक युग में Vehical के साथ स्थिर रहने वाली अनुकूल संपति प्राप्त होती है।
शिव तांडव स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित
जो स्तोत्र शिव को प्रिय हो, जिसके करने से सदा शिव प्रसन्न होते हो और प्रसन्न होकर भगवान शिव हमारे पर हमेशा कृपा करते हो उस स्तोत्र को कोन नही करना चाहेगा। जी हां हम शिव तांडव स्तोत्र की बात कर रहे है। अब आपको भी इस स्तोत्र को करने की इच्छा पैदा हो रही होगी तो हम शिव तांडव स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित बता रहे है। आप इस स्तोत्र का पाठ कर शिव की भक्ति में विचरण करते हुए शिव जी को प्रसन्न कीजिए।
प्रस्तुत है Shiv Tandav Stotra Hindi Arth Sahit –
जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ॥ १॥
अर्थ -: जिन्होंने जटारूपी अटवी से निकलती हुई गंगाजी के गिरते हुए प्रवाहों से पवित्र किये गये गले में सर्पों की लटकती हुई विशाल माला को धारणकर, डमरू के डम-डम शब्दोंसे मण्डित प्रचण्ड ताण्डव (नृत्य) किया, वे शिवजी हमारे कल्याणका विस्तार करें ॥ १ ॥
जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी-
विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्द्धनि ।
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके
किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ॥ २ ॥
अर्थ -: जिनका मस्तक जटारूपी कड़ाह में वेग से घूमती हुई गंगा की चंचल तरंग-लताओं से सुशोभित हो रहा है, ललाटाग्नि धक् धक् जल रही है, सिर पर बाल चन्द्रमा विराजमान हैं, उन भगवान् शिव में मेरा निरन्तर अनुराग हो ॥ २ ॥
धराधरेन्द्रनन्दिनीविलासबन्धुबन्धुर-
स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे ।
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि
क्वचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥ ३ ॥
अर्थ -: गिरिराज किशोरी पार्वती के विलास कालोपयोगी शिरोभूषणसे समस्त दिशाओं को प्रकाशित होते देख जिनका मन आनन्दित हो रहा है, जिनकी निरन्तर कृपा दृष्टि से कठिन आपत्ति का भी निवारण हो जाता है, ऐसे किसी दिगम्बर तत्त्व में मेरा मन विनोद करे ॥ ३ ॥
जटाजूटवर्तीजटाभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा-
कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे ।
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ॥ ४ ॥
अर्थ -: जिनके भुजंग के फण की मणियों का फैलता हुआ पिंगल प्रभापुञ्ज दिशारूपिणी अंगनाओं के मुख पर कुंकुमराग का अनुलेप कर रहा है, मतवाले हाथी के हिलते हुए चमड़े का उत्तरीय वस्त्र धारण करने से स्निग्धवर्ण हुए उन भूतनाथमें मेरा चित्त अद्भुत विनोद करे ॥ ४ ॥
सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर-
प्रसूनधूलिधोरणीविधूसराङ्घ्रिपीठभूः ।
भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटकः
श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः ॥ ५ ॥
अर्थ -: जिनकी चरणपादुकाएँ इन्द्र आदि समस्त देवताओं के प्रणाम करते समय मस्तकवर्ती कुसुमों की धूलि से धूसरित हो रही हैं। शेसनाग के हार से बँधी हुई जटावाले वे भगवान् चन्द्रशेखर मेरे लिये चिरस्थायिनी सम्पत्ति के साधक हों ॥ ५ ॥
ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा-
निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम् ।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं
महाकपालिसम्पदे शिरोजटालमस्तु नः ॥ ६ ॥
अर्थ -: जिसने ललाट-वेदी पर प्रज्वलित हुई अग्नि के स्फुलिंगों के तेज से कामदेव को नष्ट कर डाला था, जिसे इन्द्र नमस्कार किया करते हैं। सुधाकर की कला से सुशोभित मुकुटवाला श्रीमहादेवजी का उन्नत विशाल ललाटवाला जटिल मस्तक हमारी सम्पत्ति।का साधक हो ॥ ६ ॥
करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल-
द्धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके ।
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक-
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ॥ ७ ॥
अर्थ -: जिन्होंने अपने विकराल भालपट्ट पर धक् धक् जलती हुई अग्नि में प्रचण्ड कामदेव को हवन कर दिया था, गिरिराज किशोरी के पत्र भंग रचना करने के एकमात्र कारीगर उन भगवान् त्रिलोचन में मेरी धारणा लगी रहे ॥ ७ ॥
नवीनमेघमण्डलीनिरुद्धदुर्धरस्फुर-
त्कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरः ।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः
कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरन्धरः ॥ ८॥
अर्थ -: जिनके कण्ठ में नवीन मेघमाला से घिरी हुई अमावस्या की आधी रात के समय फैलते हुए दुरूह अन्धकार के समान श्यामता अंकित हैं। जो गजचर्म लपेटे हुए हैं, वे संसारभार को धारण करनेवाले चन्द्रमा से मनोहर कान्तिवाले भगवान् गंगाधर मेरी सम्पत्तिका विस्तार करें ॥ ८ ॥
प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा-
वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम् ।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदान्धकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे ॥ ९ ॥
अर्थ -: जिनका कण्ठदेश खिले हुए नील कमलसमूह की श्याम प्रभा का अनुकरण करने वाली हरिणी की-सी छविवाले चिह्नसे सुशोभित है तथा जो कामदेव, त्रिपुर, भव , दक्ष यज्ञ, हाथी, अन्धकासुर और यमराज का भी उच्छेदन करनेवाले हैं उन्हें मैं भजता हूँ ॥ ९ ॥
अखर्वसर्वमङ्गलाकलाकदम्बमञ्जरी-
रसप्रवाहमाधुरी विजृम्भणामधुव्रतम्।
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे ॥ १० ॥
अर्थ -: जो अभिमानरहित पार्वती की कलारूप कदम्बमञ्जरी के मकरन्द स्रोत की
बढ़ती हुई माधुरी के पान करनेवाले मधुप हैं तथा कामदेव, त्रिपुर, भव, दक्ष- यज्ञ, हाथी, अन्धकासुर और यमराजका भी अन्त करनेवाले हैं, उन्हें मैं भजता हूँ॥ १० ॥
जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वस-
द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट्।
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल-
ध्वनिक्रमप्रवर्तितप्रचण्डताण्डवः शिवः ॥ ११॥
अर्थ -: जिनके मस्तक पर बड़े वेग के साथ घूमते हुए भुजंग के फुफकारने से ललाट की भयंकर अग्नि क्रमशः धधकती हुई फैल रही है, धिमि-धिमि बजते हुए मृदंग के गम्भीर मंगल घोष के क्रमानुसार जिनका प्रचण्ड ताण्डव हो रहा है, उन भगवान् शंकरकी जय हो ॥ ११ ॥
दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजो-
र्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।
तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समप्रवृत्तिकः कदा सदाशिवं भजाम्यहम् ॥ १२॥
अर्थ -: पत्थर और सुन्दर बिछौनों में, साँप और मुक्ता की माला में, बहुमूल्य रत्न तथा मिट्टी के ढेले में, मित्र या शत्रुपक्ष में, तृण अथवा कमललोचना तरुणी में, प्रजा और पृथ्वीके महाराज में समान भाव रखता हुआ मैं कब सदाशिव को भजूँगा ॥ १२ ॥
कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन्
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरः स्थमञ्जलिं वहन् ।
विलोललोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मन्त्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ॥ १३॥
अर्थ -: सुन्दर ललाट वाले भगवान् चन्द्रशेखर में दत्तचित्त हो अपने कुविचारों को त्यागकर गंगाजी के तटवर्ती निकुंज के भीतर रहता हुआ सिरपर हाथ जोड़ डबडबायी हुई विह्वल आँखों से ‘शिव’ मन्त्रका उच्चारण करता हुआ मैं कब सुखी होऊँगा ? ॥ १३ ॥
निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-
निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः ।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं
परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥ १४ ॥
अर्थ -: सिर में गुथे पुष्पों की मालाओं से झड़ते हुए सुगंधमय राग से मनोहर परम शोभा के धाम महादेव जी के अंगों की सुन्दरता परमानन्दयुक्त हमारे मन की प्रसन्नता को सर्वदा बढ़ाती रहे। ॥ १४ ॥
प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी
महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना ।
विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः
शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम् ॥१५॥
अर्थ -: प्रचण्ड बड़वानल के समान पापों को भस्म करने में प्रचंड अमंगलों का विनाश करने वाले अष्ट सिद्धियों तथा चंचल नेत्रों वाली कन्याओं से शिव विवाह समय गान की मंगलध्वनि सब मंत्रों में परमश्रेष्ठ शिव मंत्र से पूरित संसारिक दुःखों को नष्ट कर विजय पायें। ॥१५॥
इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नांयथा गतिं
विमोहनं हि देहना तु शंकरस्य चिंतनम ॥१६॥
अर्थ -: इस उत्तमोत्तम शिव ताण्डव स्त्रोत को नित्य पढ़ने या श्रवण करने मात्र से प्राणि पवित्र हो जाता है, और परंगुरू शिव में स्थापित हो जाता है तथा सभी प्रकार के भ्रमों से मुक्त हो जाता है। ॥१६॥
पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं
यः शम्भूपूजनमिदं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां
लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥१७॥
अर्थ -: प्रातः शिवपूजन के अंत में इस रावणकृत शिवताण्डवस्तोत्र के गान से लक्ष्मी स्थिर रहती हैं तथा भक्त रथ, गज, घोडा आदि सम्पदा से सर्वदा युक्त रहता है। ॥१७॥
इति श्रीरावणकृतं शिवताण्डवस्तोत्रं सम्पूर्णम्।