2024 में सावन की शिवरात्रि कब है और क्यों मनाई जाती है शिवरात्रि

सावन की शिवरात्रि कब है 2024:- भगवान शिव की प्रिय शिवरात्रि वर्ष में कुल 12 बार कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को आती है। इनमे फाल्गुन कृष्ण त्रयोदशी को मनायी गयी बात है। शेष 11 शिवरात्रि सभी भगवान शिव के लिए विशेष है लेकिन इनमें श्रावण कृष्ण त्रयोदशी को आने वाली शिवरात्रि का महत्व बहुत अधिक है। वैसे तो पूर्ण श्रावण (सावन) मास में भगवान शिव को ही समर्पित किया जाता है। श्रावण सावन की शिवरात्रि 2024 में दर्शनार्थियों की उत्सुकता बढ़ेगी। सावन मास में शिव भक्तों द्वारा जलाभिषेक, पूजा, शिव का जप, मंत्र जाप, कावड़ यात्रा, आदि अनुष्ठान किया जाता है।

 Sawan Ki Shivratri Kab Hai

सावन शिवरात्रि को भगवान शिव ने अपने भक्तो को अमृत पान कराया। हम आपको बता रहे थे कि Sawan Ki Shivratri Kab Hai. विक्रम संवत २०८१ भगवान शिव के पवित्र माह सावन कृष्णा त्रयोदशी शुक्रवार दिनांक 2 August 2024 को है। इस दिन भक्तो द्वारा विशेष पूजा अनुष्ठान कर भगवान शिव द्वारा किए गए विष पान की जलन को कम करने के लिए जलाभिषेक, पंचामृत स्नान, बिल्वपत्र अर्पित करते है। इस पूजा अर्चना से शिव को Relief मिलती है और भगवान शिव प्रसन्न होकर शीघ्र मनोकामना पूर्ण करते है।

सावन की शिवरात्रि कब है | Sawan Ki Shivratri Kab Hai

सावन का महीना भगवान शंकर को समर्पित है। इस माह में भगवान शिव को रिझाने के अलग अलग प्रयास किए जाते है।  पूरे महीने मंत्र, जप, अभिषेक, व्रत उपवास, कावड़ यात्रा, मनमोहक शिवजी के श्रृंगार, कथा, आदि संकल्प लेकर करते है। इसी के साथ सावन शिवरात्रि का अपना विशेष महत्व है । आप को अब यह जानना जरूरी है कि सावन की शिवरात्रि क्यों मनाई जाती है। अब सावन shivratri के बारे में अवगत कराएंगे कि भगवान शिव को सावन शिवरात्रि क्यों पसंद है।

समुद्र मंथन से जब विष निकला तो  सभी देवी देवताओं में भय का माहौल बन गया की इस जहर का क्या करे क्योंकि इस विष से तो पूरा ब्रह्माण्ड जल जायेगा। तब सभी देवी देवताओं की चिंता हरण करते हुए भगवान शिव ने उस विष का पान किया। Sawan Ki Shivratri kyo Manai Jati Hai इसका कारण यह है की शिव ने विषपान कर विष को कंठ में रोक दिया तब उनका कंठ मिला हो गया तथा उनके विष की तपन बढ़ गया। भगवान धन्वंतरि की सलाह से सभी देवी देवताओं ने भगवान शिव का जल और पंचामृत से अभिषेक किया। यह दिन सावन की शिवरात्रि का था। इसीलिए भगवान शिव को जलाभिषेक कर मनाया जाता है।

सावन शिवरात्रि पूजा का शुभ मुहूर्त 

भगवान शिव की पूजा कभी भी करें यह स्वीकारोक्ति है। यदि आप पूजा-अर्चना काल के चौघडि़यों में भी करते हैं तो इसे स्वीकार कर कार्य सिद्ध करते हैं क्योंकि यह स्वयं कालो का काल महाकाल है। “काल उसका क्या है जिस पर महाकाल का हाथ है” जब बात सावन की शिवरात्रि पर पूजा का शुभ उत्सव की होती है तो इस दिन की पूजा में चार प्रहर की अलग ही विशेषता होती है।

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सावन की शिवरात्रि का महत्व

सावन महीना भगवान शिव को बहुत ही प्रिय है। आप यह जरूर जानना चाहेंगे कि सावन की शिवरात्रि का महत्व क्या है। माता पार्वती भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करना चाहती थी किंतु शिव ग्रहस्थ जीवन अपनाना नही चाहते थे। तब माता पार्वती ने भगवान शिव को Life Partner बनाने के लिए सावन के महीने में कठोर तपस्या की तो भगवान शिव ने प्रसन्न होकर मनोकामना पूरी होगी तथा भगवान शिव ने माता पार्वती का वरण किया। सावन की शिवरात्रि ने भगवान शिव की तपन को कम किया। सावन महीना भगवान शिव के लिए शुभ होने से की जाने वाली पूजा, अर्चना, अनुष्ठान से स्वयं और परिवार की मनोकामना पूर्ण होती है।

Sawan Ki Shivratri Ka Mahtv शादी योग्य लड़के लड़कियों को मनचाहा जीवन साथी प्राप्त होता है। जैसी माता पार्वती ने तपस्या करके शिव का वरण हुआ कलयुग में केवल सावन शिवरात्रि की व्रत पूजा से मनोकामना पूर्ण हो जाती है। जिस प्रकार भगवान शिव की तपन कम हुई उसी प्रकार भक्तो के जीवन की तपन जलाभिषेक करने से कम होती है।

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सावन की शिवरात्रि की कथा

भगवान शिव का नाम भोलेनाथ ऐसे ही नहीं रखा गया है। पवित्र तन मन से स्मरण करना ही काफी होता है। अंतिम उदारता इतनी है कि यदि किसी में कोई जल, बिल्वपत्र, फल अर्पण या नाम स्मरण कर लिया जाता है तो आशीर्वाद देने में भी कंजूसी नहीं की जाती है। भगवान शिव और माता पार्वती के आशीर्वाद के लिए सावन की शिवरात्रि पूजा कर कथा करनी या सुनानी चाहिए

सावन की शिवरात्रि की कथा श्रवण, श्रवण से भक्तों के ऊपर शिव की कृपा बनी रहती है। एक समय की बात है भोलेनाथ के बहुत सारे कपित थे। भगवान शिव के क्रोध की अग्नि से पुरा ब्रह्माण्ड जल कर नष्ट हो गया था तब माँ पार्वती ने शिव के क्रोध को शांत किया था तब से मासिक शिवरात्रि पर जल अभिषेक से क्रोधित होकर ठंडा किया जाता है।

एक बार भगवान ब्रह्मा – विष्णु दोनो अपने आप को सर्वश्रेष्ठ बताते हुए विवाद करने लगे। दोनो के मतभेद देख भगवान शिव अग्नि स्तंभ के रूप में प्रकट होकर दोनो को इसका किनारा ढूढने को कहा। जो किनारा ढूंढ लेगा वो ही सर्व श्रेष्ठ कहलाएगा । तब दोनो ही किनारा ढूढने में असफल हो गए तथा दोनो ने शिवरात्रि व्रत पूजा की जिससे उनके अंदर का स्वाभिमान नष्ट होकर सम भाव उत्पन्न हुआ। तब शिव के सामने अपनी गलती के लिए माफी मांगी। इसलिए शिव व्रत पूजा से मनुष्य के अंदर व्याप्त कुविचार एवं अहंकार समाप्त हो जाता है।

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