महाशिवरात्रि के दिन पढ़े कुबेर और चित्रभानु की यह अनसुनी कथा

महाशिवरात्रि की कथा:- महाशिवरात्रि भगवान शिव की महत्वपूर्ण रात्रि है। इस रात्रि में भक्त जनों द्वारा सेवा, पूजा, अर्चना, जाप, पाठ,  जलाभिषेक, आदि से भगवान शिव को प्रसन्न किया जाता है रात्रि जागरण का आयोजन किया जाता है। इन सभी के अलावा इस रात्रि में पुराण में वर्णित महाशिवरात्रि की कथा का आयोजन किया जाता है। जिसे सुनने और कहने वाले की मनोकामना पूरी होती है। Mahashivratri Ki Katha मे भगवान शिव की महिमा का गुणगान वर्णित है।

कथा श्रवण से भक्त स्वयं और परिवार में सुख,शांति, वैभव और शिव की कृपा बनी रहती है। भगवान शिव उसे आशीर्वाद देकर जन्म जन्मांतर तक कृपा बरसाते है। अनजाने में यदि उनको कोई याद करे या पूजा कर ले तो उन पर भगवान शिव दया करके उसे भव पार करा देते है। Mahashivratri की कथा श्रवण से ही भगवान शिव उसे संकट से पार कर देते है। ऐसी कथा जो सारे संकट हर लेते है उस महाशिवरात्रि की कथा बता रहे है –

Mahashivratri Ki Katha
Mahashivratri Ki Katha

महाशिवरात्रि की कथा सुनने का महत्व 

भगवान शिव को अंतर्मन से स्मरण किया जावे वो हर Time अपनी कामना पूर्ण करने के लिए विवश है। अनजाने में ही भगवान शिव की कोई पूजा, आराधना कर ली जावे तो भी शिव पूर्ण कृपा करते है। हम आपको महाशिवरात्रि की कथा सुनने का महत्व से अवगत कराते है कि यह कथा सुनने से अकाल मृत्यु से दूर करते हुए यमराज को भी दूर रखते है। Mahashivratri ki Katha Sunane ka Mahatva सभी पुराणों, ग्रंथों में विस्तृत रूप से वर्णन किया गया है। भगवान शिव कथा सुनने से भक्तो को शिव भक्ति मिलती है, आत्मविश्वास बढ़ता है, मन में जीव दया, प्रेम, करुणा आदि का संचार होता है। अब हम महाशिवरात्रि व्रत कथा का महत्व बता रहे है –

  • महाशिवरात्री की कथा सुनने से सबसे बडा लाभ यह होता है की मोक्ष प्राप्ति का सर्वोत्तम रास्ता है।
  • इस कथा के सुनने से सारे कष्ट ‌‌‌दूर हो जाते है 
  • महाशिवरात्री कथा को  बडी सरलता के साथ कर सकते है और अपना मन चाहा आशीर्वाद भगवान से मांग सकते है ।
  • Mahashivaratri कथा से ‌‌‌मन को शांति मिलती है ।
  • इस कथा से ‌‌‌पढाई करने मे भी मन लगने लग जाता है ।
  • इस कथा से मनुष्य सफलता के बहुत निकट ‌‌‌पहूंच जाता है ।
  • महाशिवरात्री कथा सुनने से दुश्मन से भी दोस्ती हो जाती है ।
  • महाशिवरात्री katha को करने, सुनने से मोक्ष प्राप्त कर भगवान शिवके पास शिवलोक मे चला जाता है ।
  • महाशिवरात्री कथा सुनने एवम करने से संसार की मोह माया से बचने मे इस व्रत से सबसे बडा लाभ होता है ।

शिवरात्रि पर चित्रभानु शिकारी की कथा 

एक बारभानु नामक चित्र एक शिकारी था। दोस्त की हत्या करके वह अपने कुतुब को पलटाता था। वह एक साहूकार का कर्जदार था, लेकिन कर्ज चुकाने में समय लग गया, लेकिन क्रोधित साहूकार ने शिवमठ में बंदी बना लिया। संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी। बंदी बने हंटर मठ में शिव-संबंधी धार्मिक बातें सुनी जाती हैं, वहीं शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनाई जाती है। ऋण होने पर साहूकार ने उसे फोन किया और ऋण चुकाने के लिए कहा तो हंटर ने अगले दिन सारा ऋण वापस करने का वचन दिया। साहूकार ने अपनी बात रखी और उसे छोड़ दिया। हंटर जंगल में शिकार के लिए निकला। लेकिन बेकारी बंदी गृह में रहने का कारण भूख-प्यास से व्याकुल था।

सूर्य होने पर वह एक गुफा के पास गया और वहां एक घाट के किनारे एक पेड़ पर थोड़ा सा पानी पीने के लिए ले गया, उसे छोड़ दिया क्योंकि उसे पूरी उम्मीद थी कि कोई भी जानवर अपनी तपस्या के लिए यहां निश्चित रूप से नहीं आएगा। वह बेलपत्र का पेड़ था और उसी पेड़ के नीचे भी एक पेड़ लगा था जो बेलपत्र का आकर्षण नहीं कर रहा था। शिकारी को उसका पता नहीं चला। भूख और पियास से थका वो मकान पर मकान। मचान ने तोड़ दिया टाइम। इस प्रकार के बंधक-प्यासे हंटर का व्रत भी हो गया और बेलपेपर पर लिंग भी चढ़ा दिया गया।

एक पहर रात को जाने पर एक गर्भिणी मृगी तालाब पर पानी पीने का तालाब। शिकारी ने धनुराशि पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा को अपने हाथ के स्थान पर खींचा और जल के कुछ तीरों के नीचे गिर पर गेंद बनाई और अपराधी में ही शिकारी की पहली प्रहार की पूजा हुई। मृगी बोली, मैं गर्भ धारण कर रही हूं जल्द ही प्रस्तुत कर सकती हूं। तुम एक साथ दो फिल्मों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है। मेरे बच्चे को जन्म देने के लिए जल्द ही पेश हो जाओ, तब मारूंगा। हंटर ने प्रत्यंचा प्लांटी कर दी और मृगी वाइल्ड स्पार्क्स लुप्त हो गए।

कुछ देर बाद ही एक और मृगी का ओर से साक्षात्कार। हंटर के मुनाफ़ा के सलाहकार नहीं रह रहे हैं। भूत आने पर धनुर्धर पर बाण चढ़ाया। नीचे दिए गए कुछ बेलपत्र में लिंग पर और अनायास ही हंटर की दूसरे प्रहर की पूजा भी हो गई है। टैब उसे देखें मृगी ने अविश्वास को त्याग दिया, कि मैं हाल ही में पिछले सीज़न से निवृत्त हुआ हूं। कामातुर विरहिणी हूं। अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूं। मैं अपने पति से मुलाकात जल्दी हीफ़ के पास आ जाउंगी। शिकारी ने उसे भी जाने दिया।

दो बार हंट को खोकर वह चिंता में पड़ गया। रात का आखिरी तट चल रहा था। ऐसे ही एक और मृगी अपने बच्चों के साथ सामने से देखें। शिकारी धनुर्धर पर तीर चढ़ा कर छोड़ने वाला था कि मृगी बोली, मैं इन बच्चों को अपने पिता के साथ मिलकर वापस आऊंगी। इस बार मुझे मत मारो।

शिकारी कुत्ता और बोला, मैं इतना मूर्ख नहीं हूँ कि शिकार को तुम्हारे सामने छोड़ दूँ। मैंने पहले भी दो बार अपना शिकार खोया था। मेरे बच्चे को भूख-प्यास से पीड़ित होना होगा। उत्तर में मृगी ने फिर कहा, जैसे मेरे बच्चों की मैत्री सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी उनकी फिक्र है इसलिए बच्चों के नाम पर मैं थोड़ी देर के लिए जीवनदान मांग रही हूं। मेरा विश्वास करो, मैं इन दोनों के पिता के पास से तुरंत वापस आकर प्रतिज्ञा करता हूँ। मृगी का दिन स्वर चकितशिकारी को उस पर दया आ गयी. वह उस मुर्गे को भी भाग गया

शिकार के शिकार में हंटर बेल के पेड़ पर तिरंदाजी तोड़ना- शिकार के नीचे फेकता रहा। उनके तीसरे प्रहर की पूजा भी स्वतः ही पूर्ण हो गई। जब पाओ रंगीन हुई तो एक बलिष्ठ हिरण उसी रास्ते पर आ गया। शिकारी ने सोचा कि वह शिकार करना चाहता है। शिकारी की तनी हुई डोर को देखकर मृग ने मृदु स्वर में कहा, भाई! यदि आप पूर्व में तीन हिरणियों और छोटे-छोटे बच्चों को मारना चाहते हैं, तो मुझे भी देर से न मारें,

ताकि मुझे उनके वीडियो में एक प्रयास भी न सहना पड़े. मैं उन हिरणों का पति हूं। यदि आपने उसे जीवनदान दिया है तो कृपया मुझे भी जीवनदान के लिए कुछ उपहार दें। मैं स्पष्ट रूप से शामिल हो गया हूं। मृग की बात सुन कर हंटर ने सारी कहानी मृग को सुन दी। तब मृग ने कहा था, मेरे तीर्थंकर ने जिस प्रकार की प्रतिज्ञा की थी, वे मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगे। मूल रूप से उन्हें जैसा कहा गया था, वैसे ही मुझे भी दो जाना चाहिए। मैं उन सबके सामने शीघ्र ही उपस्थित हूं।

व्रत, रात्रि-जागरण और बेलपत्रा के भाषण से हंटर का हिंसक हृदय निर्मल हो गया था। इसमें भगवद शक्ति का वास कहा गया था। उसके हाथ से धनुर्धारी छूट गया और वह मृग को जाने लगा। कुछ ही देर बाद वह मृग स्वैटर हंटर के समागम में शामिल हुईं, ताकि वह अपना शिकार कर सकें, टाइगर वाइल्डर की ऐसी सत्यता, सात्विकता और सामूहिक प्रेम भावना दर्शक हंटर को बड़ी ग्लानी हुई। उनके सेलिब्रेशन से लेकर आंसुओं की तस्वीरें तक जारी रहीं। उस मृग परिवार को न स्माइली हंटर ने अपने कठोर हृदय को जीव हिंसा से अबोली सदाबहार के लिए कोमल एवं प्रिय बनाया।

देवलोक से समस्त देव समाज भी देख रहे थे ये घटना। ऐसा कहा जाता है कि भगवान शंकर ने उन्हें अपने दिव्य स्वरूप के दर्शन की अपील की और उन्हें सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देने वाला गुह नाम दिया। यही वह गुह था जिसके साथ भगवान श्री राम ने मित्रता की थी। इस प्रकार महा शिवरात्रि पौराणिक पूज्य व्रत कथा समाप्त हुई।

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महाशिवरात्रि की कथा (Mahashivratri Ki Katha)

देवो के देव महादेव की काफी कथाएं ग्रंथों, पुराणों और सनातन धर्म में वर्णित है। भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए अलग अलग कामना के लिए अलग व्रत एवम कथाएं है। इन्ही कथाओं में अपना विशेष महत्व रखती है महाशिवरात्रि की कथा भगवान शिव जी की महिमा अपरम्पार है। ये अनजाने में चढ़ाए गए जल या बिल्व पत्र चढ़ जाने से ही प्रसन्न हो जाते है तो पवित्र मन से सेवा Puja करने पर तो शिव का सानिध्य हमेशा बना रहता है।

कलयुग में भगवान शिव जी को प्रसन्न करने के लिए कठिन तपस्या करना जरूरी नहीं है बल्कि पवित्र भाव से किए गए व्रत अथवा कथा सुनने, कहने से ही भगवान शिव को प्रसन्न कर देते है। इसलिए आपको Mahashivaratri ki Katha से अवगत कराना आवश्यक है।

महाशिवरात्रि पर 10 लाइन

शिवरात्रि पर कुबेर की कथा

कुबेर यक्ष के राजा थे। यक्ष समुद्र तट का जीवन होता है, वे ना यहाँ के जीवन में होते हैं और ना ही वो पूरी तरह से, जीवन के बाद वाली स्थिति में होते हैं। कुछ इस तरह है कि रावण ने कुबेर को लंका से बाहर निकाल दिया और कुबेर को मुख्य भूमि पर ले जाने की कहानी लिखी। अपने राज्य और प्रजा के अवशेषों में, वह शिव की पूजा करने लगा और एक शिव भक्त बन गया।

भगवान शिव ने दया दिखाते हुए उन्हें एक और राज्य और दुनिया की सारी संपत्ति दे दी, इस तरह कुबेर दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति बन गये। धन यानी कुबेर-इस तरह देखा जाने लगा. कुबेर भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त हो गए, लेकिन जब भक्त को यह महसूस होने लगे कि वह सबसे बड़ा भक्त है, तो समझ जाता है कि उसका सब कुछ बर्बाद होने वाला है। कुबेर को लगने लगा कि यदि उसने शिव को इतना चढ़ाया तो वह सबसे बड़ा भक्त होगा। और निःसंदेह, शिव ने प्रसाद में से विभूति के अलावा कभी किसी चीज़ को नहीं छुआ।

कुबेर को बड़ी गहराई से समझ में आ गया क्योंकि वो शिव जी को इतनी बड़ी चीज के रूप में जाना जाता था। एक दिन कुबेर शिव के पास गये और बोले, “मैं क्या कर सकता हूँ?” मैं आप के लिए कुछ करना चाहता हूँ।” शिव जी ने कहा “तुम मेरे लिए क्या कर सकते हो?” कुछ भी नहीं ! क्योंकि मुझे किसी भी चीज की जरूरत नहीं है। मैं ठीक हूँ. लेकिन मेरा बेटा” उन्होंने गणपति की ओर से कहा, ”ये लड़का हमेशा भूखा रहता है, ये लड़का दो बजाता है।” ये तो बेहद आसान है” कह कर कुबेर गणपति को अपने साथ खाना खाने के लिए ले गया। ।।

उसने गणपति को खाना खिलाना शुरू कर दिया और वोट दिया और चिल्लाया ही चला गया। कुबेर ने सैकडो रसोइयों की व्यवस्था की और प्रचुर मात्रा में भोजन बनाना शुरू किया। वे यह सारा भोजनालय गणपति कोसमिटर्स और वे टोक रहे। कुबेर चिंतित हो उठे और बोले, “रुक जाओ, अगर तुम इतना खाओगे तो दोस्तों पेट मोटा होगा।” गणपति ने कहा, “आप चिंता मत करो।” देखिए मैंने एक सांप को एक कमर में पेटी के रूप में बांधा रखा है। तो आप मेरे पेट की चिंता ना करें. भूख मुझे लगी है। मुझे खाना खिलाएँ। आपने ही कहा था कि आप मेरी भूख मिटा सकते हैं!”


कुबेर ने अपना सारा धन खर्च कर दिया। कहते हैं कि कुबेर ने दूसरे लोकों से भी भोजन मँगवा के गणपति को खिलाया। गणपति ने सारा भोजन खाने के बाद भी कहा “मैं अभी भी भूखा हूँ, मेरा भोजन कहाँ है? ” तब कुबेर को अपने विचार के छोटेपन का एहसास हुआ और उसने शिव के सामने झुकते हुए कहा “मैं समझ गया, मेरा धन आप के सामने एक तिनके के समान भी नहीं है, जो आप ने मुझे दिया उसी का कुछ अंश आप को वापिस दे कर मैंने खुद को एक महान भक्त समझने की गलती की” और इस क्षण के बाद उसके जीवन ने एक अलग ही दिशा ले ली।

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